Sunday, February 22, 2009

ग़ज़ल

सांसों में तुम बसे हो सीने में हो धड़कते
पलकों ki सीप के मोती कहते है ढलते ढलते
तुझे भूल जाऊंगा मैं ख़ुद पे नही भरोसा
दिन रात में तुम्ही हो ख्वाबों में तुम ही बसते
सांसों में तुम बसे हो सीने में हो धड़कते
मैं हार जाऊँ सबकुछ तेरी जीत हो मुकम्मल
बस देख ले तू मुड के मर जाऊँ हँसते हँसते
सांसों में तुम बसे हो सीने में हो धड़कते
मन्दिर को मैं न मानूं मस्जिद को न jaanu
bhagwan मेरे तुम हो खुदा के तुम farishte
सांसों में तुम बसे हो सीने में हो धड़कते

आंखों में जो नशा है आंखों से ही पिया है
aa jao पास अब तुम ये कदम नही samahlte
सांसों में तुम बसे हो सीने में हो धड़कते
पलकों के सीप के मोती कहते है ढलते ढलते




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