Sunday, February 22, 2009

ग़ज़ल

सांसों में तुम बसे हो सीने में हो धड़कते
पलकों ki सीप के मोती कहते है ढलते ढलते
तुझे भूल जाऊंगा मैं ख़ुद पे नही भरोसा
दिन रात में तुम्ही हो ख्वाबों में तुम ही बसते
सांसों में तुम बसे हो सीने में हो धड़कते
मैं हार जाऊँ सबकुछ तेरी जीत हो मुकम्मल
बस देख ले तू मुड के मर जाऊँ हँसते हँसते
सांसों में तुम बसे हो सीने में हो धड़कते
मन्दिर को मैं न मानूं मस्जिद को न jaanu
bhagwan मेरे तुम हो खुदा के तुम farishte
सांसों में तुम बसे हो सीने में हो धड़कते

आंखों में जो नशा है आंखों से ही पिया है
aa jao पास अब तुम ये कदम नही samahlte
सांसों में तुम बसे हो सीने में हो धड़कते
पलकों के सीप के मोती कहते है ढलते ढलते




Thursday, February 19, 2009

फूल

चाहे मन्दिर में माला पहनाओ
चाहे मस्जिद में चादर चढाओ
नहीं दिखता मुझमें कोई भरम
मैं फूल हूँ नहीं देखता जात और धरम

गर हो तुम्हारे घर शादी
या किसी के यहाँ मातम
चाहे खुशिओं में सजाओ
चाहे मइयत पर चढाओ
मैं फूल हूँ मुझमें है संयम

रब की चाहत मुझसे
खुशी का इजहार मुझसे
दोस्ती की फरमाइश मुझसे
दिलों का इकरार मुझसे
मैं फूल हूँ मुझमे हैं कई रंग

दिलों के खेल का हथियार हूँ मैं
रूठने मनाने का आधार हूँ मैं
न इर्ष्या न जलन शिर्फ़ सादगी है मुझमे
इसीलिए गम का भी इलाज हूँ मैं
मैं इसी में खुश हूँ मैं फूल हूँ, मैं फूल हूँ, मैं फूल हूँ॥

rastey2manzil.blogspot.com

Tuesday, February 17, 2009

तेरा चेहरा

सांवली सूरत देख के उसकी जाने क्या हो जाता है
आँख में उसकी जादू है दिल को पागल कर जाता है
मैं जहाँ चलूँ मेरे साथ चले
उसके आँचल से शाम ढले
जुल्फों में घोर अँधेरा है
मुस्काए तो चाँद खिले
है ग़ज़ल किसी शायर का वो दिल जिसको हर पल गाता है
सांवली सूरत देख के उसकी जाने क्या हो जाता है
सातों सुर घुल जाते हैं
जब कान में वो कुछ कहती है
वक्त वहीँ थम जाता है
लहरा के जो आँचल चलती है
हर अदा का मैं दीवाना हूँ हर अदा पे ये दिल मरता है
सांवली सूरत देख के उसकी जाने क्या हो जाता है
हाथों में उसका हाथ लिए
दरिया के किनारे साथ चले
उसकी आंखों में खो जायें
जब साँस में उसकी साँस मिले
अब चांदनी भी शर्माती है, हवा भी रुख को बदलती है
सांवली सूरत देख के उसकी जाने क्या हो जाता है
आँख में उसकी जादू है दिल को पागल कर जाता है


Monday, February 16, 2009

यादें

हर एक पल में हम जीतें हैं, हर एक पल मरते हैं।

ये जीना भी कोई जीना है फ़िर मरने से क्यों डरते हैं।

कितने बसंत हैं देख चुके, कितने सावन में भीग चुके।

फ़िर भी है मन में प्यास भरी और राह उसी की तकते हैं।

ये जीना भी कोई जीना है फ़िर मरने से क्यों डरते हैं।

है नींद नही इन आंखों में पर रात सुहानी लगती है।

कुछ बचा नही अब जीवन में बस याद से साँसें चलती हैं।

जिस राह से ख़ुद को अलग किया उसकी चाह क्यों करते हैं

ये जीना भी कोई जीना है फ़िर मरने से क्यों डरते हैं।

एक दिन जीवन थम जाएगा, हम दूर कहीं खो जायेंगे।

चलता रहेगा सबकुछ यूँ ही पर हम न नजर आयेंगे।

कोई याद करे न करे मुझको मेरी यादों में सब बसते हैं।

हर एक पल में हम जीते हैं हर एक पल मरते हैं।

ये जीना भी कोई जीना है फ़िर मरने से क्यों डरते हैं।

पत्रकार का एक din

अख़बार की नौकरी क्या बताऊँ मेरे यार
ऑफिस के नाम से ही चढ़ जाता है बुखार
सुबह उठने के साथ ही शुरू हो जाता है डर
हर पन्ना पलटना, हर खबर पढ़ना
क्या लगा, कैसा छ्पा, क्या रह गया
या देख ही रहा था कि मेरा फ़ोन बज गया
कैसे हो भाई, उधर से आवाज़ आई
मै कुछ बोल पता इससे पहले उसने गलती बताई
वो फोटो कहाँ गई जिसे लगना था आज
संपादक हैं नाराज गिरने वाली है गाज
सुनकर उसकी बात मन हो गया बेचैन
आज फ़िर खो गया दिन भर का चैन
कहाँ की चाय अब कहाँ का नाश्ता
हाथ मुंह धुल पकड़ लिए ऑफिस का रास्ता
हर पल सता रहा हा नौकरी का डर
याद आ रही थी माँ याद आ रहा था घर
बड़ी मुश्किल आज उस फोटो ने डाला
अपने कंप्यूटर को मैंने शुरू से खंगाला
पेज पर ही थी कैसे नही लग पाई
माफीनामा लिखने में ही समझी अपनी भलाई
मामला निपटाया फ़िर लौटकर घर आया
दो बज चुके थे अबतक जब मुंह में गई चाय
कैसी है life कैसे कर रहे एन्जॉय।


Monday, February 9, 2009

एक पल ये प्यार का

चार दिन की जिंदगी में एक पल ये प्यार का
दिल से दिल को मिलने दो झगडा क्यों बेकार का।
हवा में नया रंग है, फिजा में भी उमंग है
मचलता अंग अंग जैसे बजता जलतरंग है।
जश्न है ये प्रीत का, गीत है बहार का
दिल को दिल से मिलने दो झगडा क्यों बेकार का।
जगे हैं अरमान दिल में फ़िर से एक बार
कह दे दिल की बात जिसपे करते जानिसार
आंखों में बसा लें चेहरा अपने यार का
दिल को दिल से मिलने दो झगडा क्यों बेकार का।
होंठ कंपकंपा रहे, आँख डबडबा रही
उसकी नजदीकियां धड़कनें बढ़ा रही
एसा लग रहा है जैसे जाम हो खुमार का
चार दिन की जिंदगी में एक पल ये प्यार का
दिल को दिल से मिलने दो झगडा क्यों बेकार का।
संदीप तिवारी
हिंदुस्तान, आगरा




Friday, February 6, 2009

डर लगता है
जब तनहा थे तो तन्हाई थी जिंदगी
अब तनहा सफर से डर लगता है
तेरी यादों से चलती हैं सांसें मेरी
ये सांसें थम न जायें डर लगता है।
मेरी आंखों में तुम, तुम्हारे सपने, तुम्हारी बातें
वो खिलखिलाते दिन वो मुस्कुराती रातें
तुम्हारा मिलना। साथ साथ चलना
वो हँसना वो रोना, न खाना न सोना
जिंदा हो तुम मैं जिंदा हूँ जब तक
कहीं मर न जाऊँ डर लगता है।
जब तनहा थे तन्हाई थी जिंदगी
अब तनहा सफर से डर लगता है
धड़कता नही अब सिसकता है दिल
हुई राहें जुदा बदल गई मंजिल
ये तो होना ही था, तुझको खोना ही था
तुझे छोड़कर तुझसे मुह मोड़कर
शर्मिंदा हूँ मैं तेरा दिल तोड़कर
जिन आंखों में थे सिर्फ़ सपने मेरे
अब नज़रें मिलाने में डर लगता है।

संदीप तिवारी, हिंदुस्तान आगरा





Wednesday, February 4, 2009

vasant aa gaya

कैसे छिपोगे
कैसे छिपापाओगे
अपने आने का संदेश
तुम्हारी चुलबुली शरारतें
इशारा कर देती हैं
तुम्हारे आगमन का
लाख छिपोगे फिर भी
गगन करेगा चुगली
भवरे, तितलियाँ और कोपलें
करेंगी तुम्हारा स्वागत
कैसे छिपोगे कैसे छिपापाओगे
रोक पाओगे
गाव की पगडंडियों से
चली सरिता को
रोक पाओगे
पीली ओध्रनी में
इठलाती हवाओं को
कैसे छिपोगे कैसे छिपापाओगे
मधुर मिलन की प्यास
जो कराएगी तुम्हारा अहसास
कैसे छिपोगे कैसे छिपापाओगे
रोक पाओगे
पत्तियों को चूमती
ओस को
मुंडेर पर बैठे
पंछियों के शोर को
जो गुनगुनायेंगे
प्रिया के संदेश को
हो जाओ सचेत
ऋतुराज आ गया
ऋतुराज आ गया ऋतुराज आ गया
वसंत छा गया

दीक्षांत तिवारी हिंदुस्तान, आगरा मीठीमिर्ची.ब्लागस्पाट.कॉम