Monday, February 9, 2009

एक पल ये प्यार का

चार दिन की जिंदगी में एक पल ये प्यार का
दिल से दिल को मिलने दो झगडा क्यों बेकार का।
हवा में नया रंग है, फिजा में भी उमंग है
मचलता अंग अंग जैसे बजता जलतरंग है।
जश्न है ये प्रीत का, गीत है बहार का
दिल को दिल से मिलने दो झगडा क्यों बेकार का।
जगे हैं अरमान दिल में फ़िर से एक बार
कह दे दिल की बात जिसपे करते जानिसार
आंखों में बसा लें चेहरा अपने यार का
दिल को दिल से मिलने दो झगडा क्यों बेकार का।
होंठ कंपकंपा रहे, आँख डबडबा रही
उसकी नजदीकियां धड़कनें बढ़ा रही
एसा लग रहा है जैसे जाम हो खुमार का
चार दिन की जिंदगी में एक पल ये प्यार का
दिल को दिल से मिलने दो झगडा क्यों बेकार का।
संदीप तिवारी
हिंदुस्तान, आगरा




9 comments:

  1. you are such a good poet

    i am waiting your next poem.

    i hope that you won't deprese me.

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  2. आपका हिन्दी चिट्ठाकारी में हार्दिक स्वागत है. नियमित लेखन के लिए शुभकामनाऐं.

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  3. स्वागत ब्लॉग परिवार में.

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  4. अच्छी अभिव्यक्ति सुंदर ...लिखते रहें

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  5. Nice post u r most welcome at my blog

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  6. dil se nikli hui aawaj hai
    good...

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  7. priy bandhu "ek pal ye pyar ka "aapki kawitaa padi bahut achchhi lagi hrday prasann ho gyaa badhaai ho

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